दिल्ली आने वाले लोग कहते हैं कि मैं यहां मजबूरी में रह रहा रहूं, दिल्ली को ज़्यादातर लोग प्यार नहीं करते हैं लेकिन यहां पर आने के बाद वापस कोई नहीं जाता है. मैंने अपनी आंखों से देखा है कि जो लोग भी दिल्ली आए, वो वापस लौटकर नहीं गए. रघुवीर सहाय ने किताब लिख दी ‘दिल्ली मेरा परदेस’ और बोले कि मैं तो वापस लखनऊ चला जाऊंगा लेकिन उन्होंने दिल्ली में ही आख़िरी सांस ली. दिनकर ने दिल्ली के ख़िलाफ़ कविता लिखी लेकिन वो भी दिल्ली को कभी छोड़कर नहीं गए. मंगलेश डबराल कहते थे ‘मैं पहाड़ों पर चला जाऊंगा’ लेकिन नहीं गए.
उदय प्रकाश बार-बार कहते थे कि मैं अपने गांव सीतापुर चला जाऊंगा लेकिन वो भी आज तक नहीं गए. मां रोटी खिला रही है, दूध पिला रही है, सेवा कर रही है और लोग उसी मां (दिल्ली) को गाली देते हैं. लेकिन मैंने दिल्ली से प्रेम किया और दिल्ली के लिए कई कविताएं लिखीं. मैं दिल्ली में रहने वाला अकेला कवि हूं, जिसने दिल्ली से प्रेम किया.